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Indian Politics in the Current scenario : a political comment by Vivek Upadhyay in Hindi

               

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भारतीय राजनीति मेरी दृष्टि से : विवेक 

आज के परिपेक्ष्य में यह शब्द बहुत ही रोचक है क्योंकि गली-मोहल्ले,घर-आगन, गाँव- शहर एवं हर जगह यह शब्द विराजमान है जैसे मानो यह शब्द राजा के उस कप्टि राज सिंहासन जैसा है जो हर स्थिति में स्वयं ही न्यायधीश,अधिवक्ता और अपराधी हैं। भारतीय राजनीति का मूल सिद्धांत अगर देखें तो इसकी ज़मीनी हक़ीक़त अपने आप में लुप्त होती दिखाई देती है। क्योंकि किसी कार्य का मूल सिद्धांत होता है पर भारतीय राजनीति का सिद्धान्त,कार्य,कर्तव्य कहीं लुप्त सा प्रतीत होता है "क्योंकि भारतीय लोकतंत्र अपने मैं बहुत मज़बूत है "परंतु इस समाज की कुरीतियों का कारण बनी राजनीति को लोकतंत्र मैं सर पर विराजमान किया गया है। जिस कारण से भारतीय और राजनीती इन दो शब्दों मैं अर्थ और उसका विश्लेषण करना कठिन है क्योंकि अगर हम भारतीय शब्द की बात करें तो यह अपने मैं परिपूर्ण है समानता तथा विश्व कल्याण मैं हमारी पहचान को बनाए रखता है जो पूरे संसार में विश्वविख्यात है।


                    परंतु राजनीति शब्द अगर देखें तो इसका शाब्दिक अर्थ "वह नीति जो राज्य ,राष्ट्र के पालन के लिए उत्कृष्ट हो ऐसा प्रतीत होता है।"परंतु क्या आज राजनीति इस दिशा की ओर अग्रेसर है। लोभ ,मोह ,माया, छल ,कपट आज इस में विद्यमान् है जो आज के लोकतंत्र को कही न कही समाप्ति की ओर धकेल रहा है वैसे भी यह देखा जाता है की राजनीति साम,दाम,दंड,भेद मैं निहित है यह खोखलापन कहीं न कहीं आज के समाज को दूषित कर रहा हैं। मेरी शिकायत राजनीति से नहीं है मेरी शिकायत समाज के उस हिस्से से हैं जो देखकर भी अनदेखा कर देता है कुछ मुफ़्त की वस्तुओं के लिए लोकतंत्र की आत्मा को दूषित कर देना ग़लत है पर समाज इन वस्तुओं से ही चलता है ऐसा देखने को भी बार-बार मिलता है। आज राजनीति में कौन आएगा कौन जाएगा इस विषय पर बहुत चर्चा होती है और समाज इस वाद -विवाद में स्वयं को कष्ट पहुँचाता है ।पिता-पुत्र से पुत्र- पिता से, गुरु शिष्य से शिष्य गुरु से नाख़ुश है क्यों की कोई भी इच्छाओं की पूर्ति पूरी नहीं कर पाता यही कारण है कि समाज से विचार, सम्मान, सत्कार कहीं लुप्त सा दिखाई देता हैं। कोई सोशल मीडिया पर नाराज़ है  कोई नोकरी ना मिलने से नाराज़ है और सारा दोष एक दूसरे पर थोपने पर लगे हुए हैं समाज की उन्नति नहीं होने का कारण मुझे यही प्रतीत होता है। आज समाज में बहुत विषय हैं जिन पर चर्चा और स्वयं से प्रेणा लेकर  कार्य करने की आवश्यकता है। आज यह विषय भारतीय राजनीति इस लिए चुना क्योंकि देश की स्थिति अभी असामान्य है कोरोना काल का यह समय बहुत पीड़ादायक है और चारों तरफ़ जैसे हाहाकार मचा हों जैसे मानो दैत्यों ने देवताओं को अपने वश में कर लिया हो और वह दैत्य आज के संकुचित मानसिकता वाले लोग हैं जो मौत के इस तांडव पर भी नृत्य कर रहे और हमारा यह समाज इनकी कठपुतलियाँ बनकर इनके इशारो पर चल रहाँ है । 


और आज मैंने बहूत जगह समाज शब्द का उपयोग किया है क्योंकि यह शब्द मुझसे मेरे समाज से जुड़ा हुआ है क्योंकि यह शब्द लोकतंत्र की आत्मा है। “मैं ख़ुश हूँ मेरा परिवार ख़ुश हैं क्या मेरा समाज को ख़ुशहाल है “ यह प्रश्न हम सब पर उठता है।  ट्विटर,फ़ेसबुक,वॉट्सऐप यूनिवर्सिटी के बाहर भी एक जीवन है जो हमारी तलाश कर रहा है वह किसी भी रूप में हो सकता है पैदल चलने वाले के पैर में चप्पल, भोजन के कारण से भूखा व्यक्ति निग़ाहे लगाए बैठा है। वह विद्यार्थी जो 1 वर्ष से स्कूल नहीं गया उसको शिक्षा देने की बात हो और वर्तमान परिस्थिति में रोगी व्यक्तियों से मित्रता प्रेम भाव उनको साहस बल देना हमारे समाज और हमारा कर्तव्य है वह कही  छुआछूत के इस समय में अपने आप को अकेला महसूस न कर सकें ऐसा हमें कार्य करना होगा। पार्टीया, सरकारे, मंत्री, संतरी सब 1 दिन चले जाएंगे अगर रहेगा तो देश,भारतीय संस्कृति,भारतीय सभ्यता,भारतीय मानवता जिसका मूल स्वरूप हम है।इसलिए कोसने से अच्छा है की समाज के लिए स्वयं से कार्य करे ।


ठीक है लोकतंत्र में प्रश्न उठाना अच्छी बात है पर उस प्रश्न से कहीं खुद का नुक़सान, मानसिक रोग,पीड़ा ना उत्पन्न हो जाएं इस बात का हमें ध्यान रखना चाहिए। एक महिला मित्र से बात हुई तो कुछ क्षण में मुझे ऐसा प्रतीत हुआ की वह कष्ट में है और इस चहुमुखी राजनीति को देखकर पीड़ा हमें भी होती है परंतु ख़ुद को कष्ट देकर आपसी संबंध ख़राब करना ग़लत है।इसी कारण विशेष से हमें अपने इस समाज को बचाना है अपने मित्र,अपने बंधुओ,को बचाना है।

“मैं ख़ुश हूँ, मेरा परिवार ख़ुश हैं ,मेरे कारण मेरा समाज ख़ुश रहना चाहिए, स्वयं ही राष्ट्र की उन्नति,विकास प्रारंभ हो जाएगा।”

          उस दिन यह भारतीय राजनीति का पुनरुत्थान हो जाएगा भारत को मूल स्वरुप मिल जायेगा। 


                                 

     विवेक उपाध्याय

3 comments:

  1. भारतीय राजनीति विश्व की सबसे जटिलतम व्यवस्था है, सही आंकलन किया है।।

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  2. मुझे लगता है अपने काफी सारे विषय को एक साथ जोड़ दिया है पहला भारतीय राजनीति दूसरा भारतीय समाज तीसरा भारत में लोकतंत्र चौथा कॅरोना काल पांचवा मानवता का अंत
    मैं भी यह मानता हूं कि यह सब विषय आपस में मिले हुए हैं किंतु मैं यह भी मानता हूं इन सब का हल एक दूसरे को मिलाकर ही निकलेगा
    पर वर्तमान में जो स्थिति देख रहा हूं पूरे देश की उसके लिए मैं वर्तमान भारत सरकार को जिम्मेदार मानता हूं
    और मैं यह भी मानता हूं भारत का लोकतंत्र बहुत ही मजबूत है भारत विविधताओं का देश है हमारी संस्कृति में सभी प्रकार के धर्म और जातियां और अन्य वर्ग हैं जो भारतीय लोकतंत्र की जड़े हैं यह सब मिलकर ही भारत का समाज बनता है और मजबूती के साथ भारत में खड़ा भी है
    जिस प्रकार की भी सूचना सभी राज्यों से आ रही है उन्हें देखकर लगता है की सरकारें अपना काम जिम्मेदारी से नहीं निभा रही हैं
    मैं बस आपको अपने सुझाव दे रहा हूं जो मुझे वर्तमान समय में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को देख कर लगता है यह सब बोल कर मैं कोई नहीं बहस खड़ा नहीं करना चाहता किंतु मैं और ज्यादा लिखना भी नहीं चाहता जैसा कि मैंने आपको पांच विषय ऊपर लिखे हैं उन सभी विषयों पर कुछ बोलूं या लिखूं तो काफी समय लगेगा किंतु कई और प्रश्न खड़े हो जाएंगे जो आधार पर ना होकर दोष प्रत्यारोप हो जाएंगे
    दीपक जोशी

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